पर्व है पुरूषार्थ का,
दीप के दिव्यार्थ का,
देहरी पर दीप हमेशा जलता रहे,
तिमिर से द्वंद्व यह चलता रहे
हारेगी हमेशा ये अंधियारे की घोर कालिमा,
जीतेगी जगमग उजियारे की कनक लालिमा,
दीप ही ज्योति का प्रथम तीर्थ हैं,
कायम रहे हमेशा इसका अर्थ, अन्यथा ये व्यर्थ है,
आशीर्वादों की अमिट छाँव शकुंतला को दीजिये,
प्रार्थना-शुभकामना हमारी ले लीजिए।।
दीप के दिव्यार्थ का,
देहरी पर दीप हमेशा जलता रहे,
तिमिर से द्वंद्व यह चलता रहे
हारेगी हमेशा ये अंधियारे की घोर कालिमा,
जीतेगी जगमग उजियारे की कनक लालिमा,
दीप ही ज्योति का प्रथम तीर्थ हैं,
कायम रहे हमेशा इसका अर्थ, अन्यथा ये व्यर्थ है,
आशीर्वादों की अमिट छाँव शकुंतला को दीजिये,
प्रार्थना-शुभकामना हमारी ले लीजिए।।
©®@शकुंतला
फैज़ाबाद
फैज़ाबाद
हारेगी हमेशा ये अंधियारे की घोर कालिमा,
ReplyDeleteजीतेगी जगमग उजियारे की कनक लालिमा,
....वाह्ह बहुत खूब :) गोवर्घन पूजा की शुभ कामनाएँ !
बहुत बहुत आभार संजय जी
Deleteबहुत सुंदर लाज़वाब पंक्तियाँ शंकुतला जी।
ReplyDeleteशुक्रिया स्वेता जी....आप जैसे महान रचनाकार का प्रोत्साहन मेरे लिए आतूलनीय हैं🌻
Deleteआदरणीय शंकुतला जी-------- बहुत सुंदर पंक्तियाँ लिखी आपने | दीपोत्सव की
ReplyDeleteहार्दिक मंगल हर्दिक्मंगल कामनाएँ |
शुक्रिया वंदनीय रेणु बाला जी ....आपके अतुलनीय प्रोत्साहन से मन लेखिनी की ओर आकर्षित होता हैं
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत कविता .
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार मीना जी...आप के प्रोत्साहन से मन में उत्साह उत्पन्न होता हैं
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